Kidney Failure Ka Ayurvedic Ilaj - किडनी फेल्योर का आयुर्वेदिक इलाज


शरीर के सभी अंग महत्वपूर्ण है लेकिन किडनी सभी अंगों की तुलना में सबसे ज्यादा खास है। किडनी हमारे शरीर को स्वस्थ रखने के लिए खून साफ़ करने का सबसे जरूरी काम करती है। किडनी के इस कार्य से शरीर में तमाम रसायनों का संतुलन बना रहता है और शरीर का विकास बिना किसी रूकावट के चलता रहता है। किडनी खून साफ करने के दौरान उसमे मौजूद एसिड, सोडियम, पोटेशियम, शर्करा (Sugar), अतिरिक्त प्रोटीन और ऐसे ही कई अपशिष्ट उत्पादों को उसमे से अलग कर उन्हें पेशाब के जरिये शरीर से बहार निकाल देती है। किडनी का यह कार्य उस समय तक चलता रहता है जब तक किडनी स्वस्थ होती है। किडनी फेल्योर होने के दौरान किडनी अपने इस कार्य को नहीं कर पाती, जिसके कारण व्यक्ति को कई समस्याओं का सामना करना पड़ता है। ऐसे में किडनी को जल्द से जल्द ठीक करना चाहिए ताकि व्यक्ति फिर से स्वस्थ हो सके। Kidney failure ka ayurvedic ilaj बाकी अन्य इलाजों से सबसे उत्तम है.



किडनी फेल्योर के लिए आयुर्वेदिक दवाएं – kidney ke liye ayurvedic dawaen

किडनी खराब होने पर उसे पहले की तरह ठीक करना बहुत ही मुश्किल काम होता है। आयुर्वेद की सहायता से खराब किडनी को फिर से ठीक किया जा सकता है। आयुर्वेद पर शुरुआत से ही लोगो का विश्वास बना रहा है। यह दुनिया की सबसे पुरानी चिकित्सा प्रणाली साथ ही इसका आसानी से दुष्प्रभाव भी नहीं पड़ता दिखाई देता, एलोपैथी उपचार के मुकाबले आयुर्वेदिक उपचार प्रणाली कही ज्यादा बेहतर है।
 

हाँ, आयुर्वेद एलोपैथी के मुकाबले धीमी गति से रोग का निवारण करता है, लेकिन यह प्रणाली रोग को जड़ से खत्म करती है। एलोपैथी उपचार में अक्सर यह देखा गया है कि इसकी औषधियों से शरीर पर गंभीर नकारात्मक प्रभाव पड़ते है, वहीं आयुर्वेदिक औषधियों के दुष्प्रभाव ना के बराबर होते है। किडनी फेल्योर में अक्सर निम्न वर्णित औषधियों का इस्तेमाल किया जाता है:-

गोखरू - किडनी को स्वस्थ रखने के लिए सबसे उत्तम आयुर्वेदिक औषधि है। गोखरू की तासीर बहुत गर्म होती है, इसलिए इसका प्रयोग सर्दियों में करने की सलाह दी जाती है। गोखरू के पत्ते, फल और इसका तना तीनों रूपो में उपयोग किया जाता है, इसके फल पर कांटे लगे होते हैं। किडनी के लिए गोखरू किसी वरदान से कम नहीं है। गोखरू कई तरीकों से किडनी को स्वस्थ बनाएं रखती है। गोखरू क्रिएटिएन कम करने, यूरिया स्तर सुधारने में, सूजन दूर करने में, मूत्र विकार दूर करने में, किडनी से पथरी निकलने में सहायता करता है।

पुनर्नवा   इस जड़ी बूटी का नाम दो शब्दों - पुना और नवा से प्राप्त किया गया है। पुना का मतलब फिर से नवा का मतलब नया और एक साथ वे अंग का नवीकरण कार्य करने में सहायता करते हैं जो उनका इलाज करते हैं। यह जड़ीबूटी किसी भी साइड इफेक्ट के बिना सूजन को कम करके गुर्दे में अतिरिक्त तरल पदार्थ को फ्लश करने में मदद करती है। यह जड़ीबूटी मूल रूप से एक प्रकार का हॉगवीड है।

अश्वगंधा -  अश्वगंधा की जड़ को सुखाकर चूर्ण बनाकर इसे प्रयोग में लाया जाता है। इस चूर्ण को उबालकर इसके सत्व का प्रयोग किया जाता है या फिर आप इसका प्रयोग गर्म पानी के साथ भी कर सकते हैं। अश्वगंधा का चूर्ण रक्त विकार, उच्च रक्तचाप, मूत्र विकार जैसे गंभीर रोगों से उचार दिलाने में मदद करता है।

गोरखमुंडी    किसी व्यक्ति को अगर किडनी संक्रमण हो जाता है, तो उसे बार-बार पेशाब आने लगता है। साथ ही रोगी को पेशाब मे जलन, गंधदार पेशाब आने लगता है और पेशाब मे रक्त आने की समस्या का सामना करना पड़ता है। इस समस्या से निजात पाने के लिए गोरखमुंडी काफी असरदार साबित हुई है।

गिलोय  गिलोय की बेल की तुलना अमृत से की जाए तो गलत नहीं होगा। इस बेल के हर कण में औषधीय तत्व मौजूद है। इस बेल के तने, पत्ते और जड़ का रस निकालकर या सत्व निकालकर प्रयोग किया जाता है। इसका खास प्रयोग गठिया, वातरक्त (गाउट), प्रमेह, मधुमेह, उच्च रक्तचाप, तेज़ बुखार, रक्त विकार, मूत्र विकार, डेंगू, मलेरिया जैसे गंभीर रोगों के उपचार में किया जाता है। यह किडनी की सफाई करने में भी काफी लाभदायक मानी जाती है।

किडनी को स्वस्थ रखने के लिए इन योगाभ्यासों को अपनाएं:-

किडनी रोगी को अपनी खराब किडनी को स्वस्थ करने के लिए योग का सहारा जरूर लेने चाहिए, इससे उन्हें जल्द से लाभ मिलना शुरू हो जाएगा।  Yoga for kidney - किडनी स्वस्थ रखने के लिए योग :-

भ्रामरी प्राणायाम

इस प्राणायाम की मदद से आप आसानी से चिंता मुक्त को सकते हैं।
  • सबसे पहले आप किसी भी शांत वातावरण में बैठ जाइये जहाँ पर हवा का प्रवाह अच्छा हो। इस दौरान अपने चेहरे से क्रोध के भाव को दूर रखते हुए चेहरे पर मुस्कान को बनाए रखें।
  • कुछ समय के लिए अपनी आँखों को बंद रखें। अपने शरीर में शांति व तरंगो को महसूस करें। आप चाहें तो इस दौरान ओम का उच्चारण कर सकते हैं।
  • अब आप तर्जनी ऊँगली को अपने कानों पर रखें। आपके कान व गले की त्वचा के बीच में एक उपास्थि है। वहाँ अपनी ऊँगली को रखें।
  • ऊँगली रखने के बाद एक लंबी गहरी साँस ले और साँस छोड़ते हुए, धीरे से उपास्थि को दबाएँ। आप उपास्थि को दबाए हुए रख सकते हैं अथवा ऊँगली से पुनः दबा य छोड़ सकते हैं। यह प्रक्रिया करते हुए लंबी भिनभिनाने वाली (मधुमख्खी जैसे) आवाज़ निकालें।
  • आप इस योगासन को 3 से 4 बार कर सकते हैं।

चन्द्रभेदी प्राणायाम -

चन्द्रभेदी प्राणायाम को रोजाना करने से चन्द्र नाड़ी क्रियाशील हो जाती है इसलिए इसका नाम चन्द्र्भेदी प्राणायाम पड़ा।
  • सबसे पहले किसी समतल व शांत जगह पर दरी बिछाकर उस पर सुखासन (मुस्कान के साथ) की स्थिति में बैठ जाएँ।
  • अब अपनी गर्दन रीड की हड्डी और कमर को सीधा करें। ध्यान दे, कमर बिलकुल सीधी होनी चाहिए।
  • अब अपने बायें हाथ को बायें घुटने पर ही रखें। और दायें हाथ के उंगूठे से दांय नाक के छेद को बंद कर दें।
  • अब बायीं नाक से लंबी और गहरी सांस को भरें और हाथ की अंगुलियों से बायें नाक के छेद को भी बंद कर दें।
  • अब जितना हो सके अपनी स्वास को अंदर ही रोकें।
  • बाद में बायीं नाक को बंद करते हुए दाहिने नथुने से धीरे-धीरे श्वास को छोड़ दें।
  • अब इसी क्रिया को कम से कम 5-10 मिनट तक करें।

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मत्स्यासन की प्रक्रिया -

यह आसन रोगियों के पीठ के दर्द, गर्दन के दर्द और किडनी के यह फायदेमंद होता है।
  • पहले आप दाहिने पैर को बांयी जांघ पर रखें
  • फिर अब बाएं पैर को दाहिनी जांघ पर रखें
  • अब अपनी पीठ के बल लेट जाएं
  • अपनी कोहनी के साथ अपने सिर को जकड़ें
  • इस स्थिति में 30 सेकंड तक रहें

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