Nephrotic Syndrome Treatment in Ayurveda in Hindi (नेफ्रोटिक सिंड्रोम ट्रीटमेंट इन आयुर्वेदा इन हिंदी )

हम सभी इस बात को अच्छे से जानते हैं कि किडनी हमारे शरीर के लिए कितनी आवयश्क है, अगर इसमें हल्की सी भी खराबी आ जाए तो व्यक्ति को कई शारीरिक समस्याओं का सामना करना पड़ता है। जिस तरह किडनी हमारे शरीर के लिए खास अंग है ठीक उसी तरह यह बड़ी आसानी से बहुत सी समस्याओं का शिकार भी बन जाती है, जिसमे से एक नेफ्रोटिक सिंड्रोम Nephrotic Syndrome भी है। नेफ्रोटिक सिंड्रोम अन्य किडनी रोगों के भांति ही किडनी को खराब होने की कगार पर ले जाती है, लेकिन यह बड़ों के मुकाबले बच्चों में अधिक दिखाई देती है।ऐसा नहीं है कि बड़े लोग इसका शिकार नहीं बनते, पर बच्चों के मुकाबले बहुत कम। किडनी से जुड़ा नेफ्रोटिक सिंड्रोम 2 से 6 साल के बच्चों में ही होता है ओर बड़ों में यह किसी भी उम्र में हो सकता है। वहीं अगर वयस्कों की बात करे तो केवल 10 प्रतिशत वयस्क इस बीमारी की चपेट में आते हैं।

 


नेफ्रोटिक सिंड्रोम क्या है?

किडनी हमारे शरीर से अपशिष्ट उत्पादों को पेशाब के जरिये बाहर निकालने का काम करती है। किडनी जब अपने नेफ्रॉन यानि छन्नी की मदद से हमारे शरीर में बहने वाले खून को साफ़ करती है तो उसमे मौजूद सभी अपशिष्ट उत्पादों और अन्य गैर जरूर उत्पादों को पेशाब के जरिये शरीर से बाहर निकाल देती है। अपने इस काम के दौरान किडनी हमारे खून में सभी पौषक तत्वों को मिला देती है जो कि हमारे शरीर के लिए जरूरी होते हैं, इन पौषक तत्वों में प्रोटीन, कैल्शियम, आयरन आदि शामिल है। लेकिन जब किडनी के नेफ्रॉन यांनी छन्नी क्षतिग्रस्त हो जाती है या फिर छन्नी में बड़े छेद हो जाते हैं तो शरीर के गैर जरूरी उत्पादों के साथ-साथ आवश्यक पौषक तत्व और प्रोटीन पेशाब के जरिये शरीर से बाहर निकल जाता है।

Ayurvedic Treatment Control Nephrotic Syndrome Problem

जब पेशाब के जरिये प्रोटीन शरीर से बाहर निकलने लगता है तो खून में प्रोटीन की कमी होने लगती है जिसकी वजह से व्यक्ति को कई शारीरिक समस्याओं का सामना करना पड़ता है, जिसे नेफ्रोटिक सिंड्रोम कहा जाता है। काफी लोग नेफ्रोटिक सिंड्रोम की बीमारी को प्रोटीन लोस के नाम से भी जानते हैं, आपको बता दें कि यह कोई बीमारी नहीं है बल्कि किडनी से जुड़ी एक समस्या है या अन्य शब्दों में कहा जाए तो यह किडनी खराब होने का एक शुरूआती लक्षण भी है। इसमें किडनी की छोटी वाहिकाएं, जो फिल्टर का कार्य करती है, वह खराब हो जाती है। अगर उचित उपचार नहीं किया जाए तो नेफ्रोटिक सिंड्रोम की बीमारी लंबे समय तक व्यक्ति को प्रभावित कर सकती है।

 

नेफ्रोटिक सिन्ड्रोम रोग होता क्यों है?

हर किसी रोग के होने के पीछे कोई न कोई कारण होता है, लेकिन नेफ्रोटिक सिन्ड्रोम रोग होने के पीछे निश्चित कारण की पहचान अभी तक नहीं की जा सकी है। कुछ तर्कों के आधार पर इस रोग के पीछे श्वेतकणों में लिम्फोसाइट्स के कार्य में आई कमी को माना जाता है। कुछ लोगो का मानना है कि इस गंभीर रोग के पीछे आहार में परिवर्तन और दवाइयों का अधिक सेवन करना होता है, लेकिन वैज्ञानिकों का एक बड़ा धड़ा इस तर्क या इस धारणा को बिलकुल गलत मानता है। आम तौर पर बच्चों में बार-बार सूजन का आना नेफ्रोटिक सिन्ड्रोम का मुख्य कारण है और इसे एक लक्षण के तौर पर भी देखा जाता है।

वयस्कों में यह बीमारी किसी आन्तरिक संक्रमण, मधुमेह, किसी दवा से हुआ अन्य कोई रोग, एमाइलॉयडोसिस या वंशानुगत के कारण हो सकता है। यहाँ पर यह बताना भी जरूरी हो जाता है कि एक स्वस्थ व्यक्ति के यूरिन में प्रोटीन की मात्रा कितनी होनी चाहिए, एक स्वस्थ व्यक्ति के पेशाब में 30 mg/g से कम प्रोटीन की मात्रा होनी चाहिए, अगर 30 mg/g के करीब या इससे ज्यादा होता है तो ऐसे व्यक्ति को जल्द से जल्द चिकित्सक से बात करनी चाहिए।

 

नेफ्रोटिक सिन्ड्रोम रोग होने पर क्या लक्षण दिखाई देते हैं?

अन्य रोगों के भांति नेफ्रोटिक सिन्ड्रोम होने पर भी व्यक्ति को इसके कई लक्षण दिखाई देने लगते हैं, जिनकी पहचान कर इस गंभीर किडनी रोग के बारे में पता लगाया जा सकता है। नेफ्रोटिक सिन्ड्रोम होने पर निम्नलिखित शारीरिक समस्याएँ होने लगती है जिन्हें लक्षण के तौर पर देखा जाता है :-

  • आमतौर पर इस रोग की शुरूआत तेज बुखार और खांसी से होती है।
  • नेफ्रोटिक सिन्ड्रोम होने के शुरूआती लक्षणों में आंखों के नीचे और चेहरे पर सूजन दिखाई देने लगती है जो कि सुबह के समय ज्यादा होती है।सूजन दिन के बढ़ने के साथ धीरे-धीरे कम होने लगती हैं और शाम तक बिल्कुल कम हो जाती हैं.
  • रोगी का पेट फूलने लग जाता है और पेट में दर्द भी होने लगता है। बच्चों में यह लक्षण आम माना जाता है।
  • नेफ्रोटिक सिन्ड्रोम होने पर पेशाब से जुड़ी समस्याएँ होना आम है। इसमें पेशाब झागदार आने लगता है जो कि नेफ्रोटिक सिन्ड्रोम होने का सबसे बड़ा लक्षण है। इसके अलावा पेशाब का रंग बदलना, पेशाब से बदबू आना, पेशाब का रंग बदलना, पेशाब करते हुए जलन और दर्द होना भी शामिल है।
  • सूजन की वजह से रोगी का वजन बढ़ सकता है या भूख न लगने और बुखार की वजह से आई कमजोरी के कारण वजन कम भी हो सकता है।

 

क्या नेफ्रोटिक सिन्ड्रोम का Ayurvedic Treatment हो सकता है?

वर्तमान समय में एक बहस छिड़ी हुई है कि आयुर्वेदिक उपचार बेहतर है या एलोपैथीक उपचार? निसंदेह एलोपैथिक उपचार पद्धती ने इस समय काफी तरक्की कर ली है और तकरीबन हर रोग का उपचार खोज लिया है और काफी शौध अभी बाकी है। लेकिन अगर बात करें आयुर्वेदिक उपचार पद्धती की तो यह हर मायने में एलोपैथिक उपचार पद्धती से बेहतर है। इसका एक विशेष कारण यह है कि एलोपैथी में जहाँ किसी भी रोग को केवल एक निश्चित समय के लिए ही दूर किया जा सकता है, वहीं आयुर्वेदिक उपचार की मदद से हर रोग को हमेशा के लिए जड़ से खत्म किया जा सकता है। इसमें कोई दोराहे नहीं है कि एलोपैथी अभी भी रोगों को लेकर शौध कर रहा है वहीं आयुर्वेद के पास पहले से ही हर रोग का उपचार मौजूद है। ठीक इसी प्रकार आयुर्वेद में आयुर्वेदिक औषधियों की मदद से नेफ्रोटिक सिन्ड्रोम को जड़ से खत्म किया जा सकता है। नेफ्रोटिक सिन्ड्रोम से छुटकारा पाने के लिए बेहतर आयुर्वेदिक औषधियों का प्रयोग तो किया ही जाता है साथ-ही आहार का भी खास ध्यान रखा जाता है, जिससे किडनी से संबंधित इस गंभीर रोग को आसानी से दूर किया जा सकता है।

Post a Comment

0 Comments